ज़िन्दगी कहाँ है तू ? उम्र बीती जा रही तू नज़र ना आ रही नैन राह तकते थक गए बेचैन दिल की पुकार सुन ! ज़िन्दगी कहाँ है तू ? माँ की तरह दुलारती हर तरफ बहार सी पिता की हिफाज़त सी रब की इबादत सी ज़िन्दगी कहाँ है तू ? गुरु के मार्गदर्शन सी अपने घर की छत सी पुरसुकून रात सी प्रियतम के मान मनुहार सी ज़िन्दगी कहाँ है तू ? ऊँगली पकड़ के राह दिखा नखरे तू ना दिखा मुझमे ही रहती है तू क्यों मुझे नकारती ज़िन्दगी कहाँ है तू ? कब तलक मैं राह तकूँ ? हैं सांस ये उधार सी ! दिख गयी जो एक बार गले लगूंगी बार बार रोउंगी मैं जार जार ज़िन्दगी कहाँ है तू ? कहाँ थी तू अब तलक झपकूंगी ना मैं पलक रह जाउंगी निहारती आयी है तू अब के जब मौत है पुकारती ज़िन्दगी कहाँ है तू ? सपनों में अक्सर आती है ख्वाब तू सजाती है हकीकत में आ ना एक बार कर भी ले ना मुझसे प्यार एकतरफा प्यार को है पूर्णता पुकारती ज़िन्दगी कहाँ है तू ?