"जो रह सके रागद्वेष से दूर जो सह सके वेग काम क्रोध का जो हो अंतःकरण से शांत जो मिटा चुका हो हर संशय जो रत हो समस्त प्राणियों के हित में जो निश्छल भाव से परमात्मा में हो स्थित वो ही ब्रह्म ज्ञानी ब्रह्मवेत्ता शांत ब्रह्म को प्राप्त है"
"जो रह सके रागद्वेष से दूर जो सह सके वेग काम क्रोध का जो हो अंतःकरण से शांत जो मिटा चुका हो हर संशय जो रत हो समस्त प्राणियों के हित में जो निश्छल भाव से परमात्मा में हो स्थित वो ही ब्रह्म ज्ञानी ब्रह्मवेत्ता शांत ब्रह्म को प्राप्त है"