जब अंतस की पीड़ा उठे, नैनन बरसे नीर व्याकुल मनवा पंछी बने, होय उड़ान अधीर फड़कें होंठ, दर्द की उठे, लहर तोड़ कर रीढ़ डटा रहता जो पर्वत-सम, वो ही सच्चा वीर ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
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मुर्दे
टूटे दिल,बिखरे सपनों के साथ जीते हैं वो रोज़ अपने अश्क़, ख़ूने जिगर पीते हैं कौन कहता है यहाँ साँस नहीं लेते मुर्दे बिन आस-ओ-अहसास के मुर्दे ही जीते है ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
मीठी वाणी
अनुभव की अकड़ में, न तन प्राणी तू बोल मीठी मधुर, मृदु वाणी तू माना श्रम किया बहुत, सहा तूने बहुत पर इसकी दिखा न, मेहरबानी तू बोल मीठी मधुर, मृदु वाणी तू ----- जीवन अनुभव से माना, मन कड़वा हुआ कंठ तक रख ज़हर, बोल मीठी वाणी तू आज के वक़्त में दर्द पसरा हुआ हर उपाय यहाँ बेअसरा हुआ अपनों से बात कर, यूँ न अनजानी तू बोल मीठी मधुर, मृदु वाणी तू---- तन है तेरा शिथिल, दे सकेगा भी क्या कम से कम न दे दूजी, आँखों में पानी तू जो जितना तेरा करे, शूल सा वो गड़े इतनी भी क्या अकड़, न कर बेईमानी तू बोल मीठी मधुर, मृदु वाणी तू ----- ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
266.दोहा
*बनिए-सा इस प्यार को, तू न तराजू तोल* *जितना प्यार मिले तुझे, उतना तो दे मोल* ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
207.दोहा
*बाँट रहे हम प्यार बस, वो करता अपमान* *उसने परिचय यूँ दिया, गिरा न अपना मान* ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
197.दोहा
गुरु पद पंकज को नमन, रहे ज्ञान भण्डार।
गुरू कृपा बरसे तभी, हो भवसागर पार ।।
✍️ सीमा कौशिक ‘मुक्त’ ✍️
अनमोल
ज़िन्दगी अनमोल है, सदा ज़िन्दगी को चुनो । गम की अँधेरी रात में, बढ़ते रहना ही चुनो ।। आँधियाँ तूफ़ान रस्ता रोकलें कितना मगर । हार न मानो हमेशा , उनसे लड़ना ही चुनो ।। दिल की हर आवाज़ को, क्यों अनसुना करते रहे । मोल जानोगे अगर, फिर ना करोगे अनसुना।। सोच की दलदल में फँसना, है सिरे से ही वृथा। दुनिया बदलने की जगह, ख़ुद को बदलना ही चुनो ।। क्या सज़ा दोगे किसी को, क्यों हो तुम सबसे नाराज़। आज अब अनमोल है, बस आज और अब चुनो।। ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
गठजोड़
वो ही बंधन प्यार का, है वो ही गठजोड़ इक-दूजे का साथ हो, तीजा सके न तोड़ तीजा सके न तोड़, दिलों का है ये बंधन प्यार सदा अनमोल, भरोसा इसका ईंधन कसम निभाना रीत, निभाए हर वादा जो जन्म जन्म का प्यार, यहीं पे पा जाता वो
मन
मन खुशियों से बावरा,तन है थक कर चूर कैसे रोकूं पाँव जब, नाचे ह्रदय मयूर नाचे ह्रदय मयूर, पायी अनगिनत खुशियाँ प्रभु किरपा से शान, अब जीवन रंगरलियाँ झूम झूम के आज, हवाएँ करती नर्तन मन से मन का मेल, भरा है खुशियों से मन
145.दोहा
सुनो आज दूँ मैं बता, अहम् बहुत ये राज़ दुनिया से रूठो मगर, मत हो ख़ुद नाराज़ ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️