अजनबी

मायूसियों के आलम, पकड़ा उम्मीदे दामन 
जब एक अजनबी हमें अपना सा लगा 
हट गयी उदासी चाहत की मीठी दवा सी 
जब कोई अजनबी हमें मरहम सा लगा 
कानो में फुसफुसाया एक गीत गुनगुनाया 
जब एक अजनबी हमें मृदु राग सा लगा 
घनघोर अँधेरे में वक़्त काटे नहीं कटता 
तब एक अजनबी हमें सुनहरी भोर सा लगा 
                ✍🏻सीमा कौशिक 'मुक्त'✍🏻

दोहे .295-299

दोहे चाय पर ---
१/ सूरज उगते माँगते, चाय पति महाराज 
देर ज़रा सी हो अगर, गिर सकती है ग़ाज
 
२/ दिनभर चाय नहीं मिले, टूटे सर्व शरीर 
चाहें छप्पन भोग हों, पूरी हो या खीर 

३/ चाय की रहे चुस्कियाँ, हो यारों का साथ 
अपनापन दूना बढ़े, मिले हाथ को हाथ
 
४/नशा किसी भी चीज़ का, होता बड़ा खराब 
गुटखा कॉफ़ी चाय हो, या फिर होय शराब
 
५/ पदार्पण हो शाम का, और हाथ में चाय 
नैन-नैन में बात हो, दिल में प्रीत समाय 
        ✍🏻 सीमा कौशिक 'मुक्त'✍🏻

रिमोट

अपने जीवन का रखें, अपने पास रिमोट 
सारी ख़ुशियाँ छीन कर, ढूँढे तुममे खोट
ढूँढे तुममे खोट, यही है दुनिया प्यारे  
दुख वही रहे बाँट,  जिनको समझो सहारे 
सुख -दुख मन के भाव, पूर्ण यदि चाहो सपने 
इनपर हो अधिकार, ज़रा पहचानो अपने 
       ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️ 

मान

छीन के लिया हो मान ,बोलो है वो मान क्या 
मान मांग छोटा होय  मिल पायेगा मान क्या 
बड़े को नीचा दिखा, कोई बड़ा बन पाए क्या 
जग में अपमान कर भला पा सकेगा मान क्या  
           ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त'  ✍️