हमने कब चाहा कब कहा तुमसे की हमे मज़बूत बनना है आप दिन ब दिन सालों साल हमे गम देते चले गए हाँ आपके करम से मज़बूत तो हुए हम,झेल गए गम ! पर दिन ब दिन सालों साल तुमसे दूर भी होते चले गए
Month: October 2021
खोना
खूब इतरा रहे हो तुम कि तुझमे खोकर हम खुद को ढूंढ़ते रहे ! तेरी आवाज़ों में खोये रहे ! पर कभी जानने की कोशश तो की होती कितने खुश थे हम खुद को ढूंढ़ते हुए ? कौन खुश रह सकता है खुद को खोते हुए ?
इजाज़त
सह सकते थे हम तेरे जुल्मों सितम आखिरी दम तक पर क्या करें ज़मीर हाल हालात इज़ाज़त नहीं देते ! मज़बूरियाँ हो गयीं ख़त्म और हम आज़ादी पसंद तुम तो अरसे से हमारी आवाज़ का जवाब नहीं देते !
दस्तक
दिल के दरवाजे पे, दस्तक ना दे, तू इतने प्यार से! दर्द अब तेरे लिए सारे रास्ते बंद कर दिए हमने ख़ुशी अब सिर्फ तेरे लिए जगह है दिल में रंजोगम से तोड़ लिए अब सारे रिश्ते हमने
आधार
सच ही सार है झूठ निस्सार है प्यार ही सार है नफरत निस्सार है निस्सार संसार ये झूठ पर टिका हुआ सच और प्यार ही मगर इसका आधार है
बेशर्मी
ज्यादातर सभी को आप बेशर्मी से हँसते देखिये अपने बोले झूठ पर खूब इतराते देखिये बेवफाई का जो हैं ,खुद जीता जागता सबूत दूसरों को वफादारी का ,सबक सिखाते देखिये खुद अपनी ख़ुशी कहीं भी ,ढूँढ लेते हैं जनाब दूसरे की ख़ुशी पर, दिल पे साँप लोटते देखिये वो तो किसी ने किया नहीं ,हमारे लिए कुछ भी ! जो खुद से हासिल किया,उस पर राल टपकाते देखिये वो जो दूसरे की ख़ुशी को पूरा डस गया उसको आज साँप सा फुफकारते देखिये खुद तो बोला अकड़ के 'जी ली अपनी ज़िन्दगी' हमने दूसरा जीने लगा तो नागवार गुजरते देखिये अमानवीयता की हद से खुद ,गुजर गया जो कईं बार उसे 'किया ही क्या है मैंने' का गीत,हज़ार बार गाते देखिये सहने वाले सहते रहे हद से गुजरता रहा वो उस को हर रोज़ नयी हद पार करते देखिये बहुत हुआ अब ! ज़रा संभल ! रोज़ तुझे ही क्यों गम सहते हुए देखिये अकेलापन बेइज़्ज़ती से है बेहतर यार ! दिल तड़प जाता है ! तुझे तन्हाई में रोते देखिये !
हमसफ़र
क्या जाने मुझे कितने, दर्द में डुबो गया आज वो नाराज़ होकर पीठ करके सो गया... आंसुओं में भीगा, चेहरा था मेरा मगर ! मुँह धुला समझ कर वो, अपने में ही खो गया... जिसको अपना समझ के ,बिता दी हमने एक उम्र किस्मत के इम्तिहान में वो, फिर से जीरो हो गया ... मिट्टी उसकी और हमारी दोनों की करामाती है ना वो बदला ,ना ही हम ,आज साबित हो गया ... हमको समझ ना आया वो, और ना उसको हम ना जाने कैसे ये लम्बा सफर ,यूँ ही तय हो गया ...
दोस्ती
धीरे धीरे दिल से मेरे दूर हो गए तुम साथ रहने को भी फिर मज़बूर हो गए तुम बेबसी देख कर भी तेरी, ना खुश हुए हम मेरे होठों की मुस्कराहट के तलबगार हुए तुम ! रब से उठा के हाथ, मांगी है ये दुआ ! प्यार रहे ना रहे ये दोस्ती रहे हमदम !
नवजीवन
चेहरे को छूती ये ठंडी हवा छायी मस्त ये काली घटा दिल पूछता है मुझसे ये मुझे कहाँ ले आयी ? तू ये बता! अंधे कुँए से बाहर कौन तुझे ले के आया ये बता गुनगुनायी दिल ने फिर कोई सरगम नयी ! मुस्कुराने लगी है आँखें राज़ क्या है ये बता हवाओं की सरगोशियां लहलहाना पेड़ों का रिमझिम बूंदें चेहरे पर लायी 'नवजीवन' का पता
एक साथ
क्या हसीं अहसास थे जब हम एक साथ थे दूर दूर रह के भी कैसे एकदूजे के साथ थे ना अहसास ना साथ पल पल बढ़ती दूरियां ! वो प्यार के हसीं पल, सब तभी थे ! जब हम एक साथ थे !