ये चाह अति निकृष्ट है,ना ज़हर से जीवन सींच चाह के चक्कर में जो पड़ा,उसे माया लेती खींच
Month: November 2021
नहीं चाहिए
सितम की मत करो इंतहा कि बगावत ही हो मज़लूम को इतना सताना नहीं चाहिए तुम खुद अपनी नज़रों में इतना मत गिरो बेवजह सर झुकाना नहीं चाहिए थक जाए मनाते ना आये मुड़कर कोई इतना भी रूसाना किसी को नहीं चाहिए गर किसी के दिल में नहीं चाहत तेरे लिए तो कभी उसको मनाना नहीं चाहिए चुप रहनेवाले अक्सर होते हैं छुपे रुस्तम उनको नीचा दिखाना नहीं चाहिए बेज़ुबान है पशु पक्षी न कुछ कह पाएं कभी ज़ुल्म उनपे ढहाना नहीं चाहिए ठहरो तुम ,आसमान छूने की ज़िद्द रोको मुर्दों को सीढ़ी बनाना नहीं चाहिए -सीमा कौशिक 'मुक्त'
बेहतर
आज प्यार का आगाज़ उनसे कुछ यूँ कह कर हुआ " मेरा महबूब वक़्त के साथ साथ बेहतर हुआ "
नसीहत
तमाम उम्र वो दूसरों को नसीहतें देता रहा खुद करता अमल तो दुनिया में नाम होता
नूर
आप बस प्यार करते जाइये ना कोई ख्वाहिश ना कोई शर्त ना कोई बंधन और ना झिझक बरसेगा उस रब का नूर ऐसे कि बिन मांगे मोती पाइये
होश
हमने तो बस जाना ये के, होश छीने है हर कोई जब हो वक़्त कम मायने नहीं रखता है तब कोई अपने वज़ूद को इज़्ज़त देना, है पहला फ़र्ज़ इंसा का सदा तुम होश में रहना,लबों की हॅंसी ना छीन ले कोई
तू ही तू
तुझसे ज़ुदा मुझे मेरी हस्ती नहीं चाहिए ए खुदा!मेरे भीतर बाहर बस तू ही तू चाहिए दिया है जो भी तूने इस मांग के आगे है कुछ भी नहीं ये देने को होजा राज़ी तो फिर क्या चाहिए रब मेरे ! मेरी छोटी सी ये इल्तिज़ा तो सुन चारों तरफ तेरी हस्ती की भीनी खुशबू चाहिए सांस में, लहू में, धड़कनों में हो बस तू ही तू हर तरह से रोशन मेरी सुर्ख रूह चाहिए हँसूँ रोऊँ बोलूँ नाचूँ करूँ कुछ भी मैं तुझे पसंद आये 'रब ' तेरी इसमें रज़ा चाहिए
अडिग
चाहे कोई तेरे दर्द का मरहम बने ना बने जीवन बगिया में नया फूल खिले ना खिले फैले रहें चारों ओर शांति के खूबसूरत फूल कोशिश कर तेरी दुनिया रहे अडिग ! कभी न हिले
झूठ
इतने झूठ बोल कर भी जिन्हे बुरा नहीं लगता खुदा बचाये मुझे ऐसे बड़े महान लोगों से सच बोलते हैं हम, हमारी छोटी सी है दुनिया दहल जाए ना ये दुनिया इनके कारनामों से
सिर माथे
ज़िन्दगी तूने दिया जो,हमने लगाया सिर माथे जो लड़ते हैं तुझसे वो भी तो कुछ नहीं पाते सच है मौत को गले लगाने वाले होते हैं कायर जीतते हैं वही जो कमियों के साथ गले लगाते संघर्ष से घबराना टूटना बिखरना मेरी नहीं फितरत गिरके उठे हैं बार बार तेरी आँख से आँख मिलाते मोहब्बत है बहुत और दिल में तेरी इज़्ज़त भी तेरा करम है रब कि हम रोज़ निखर निखर जाते आदमी फंसाया करता था जाल में मछलियां अब तो आदमी ही आदमी को जाल में हैं फंसाते ज़िन्दगी अब तेरा तो हर अंदाज़ है निराला कोशिश है संवार लूँ बिगड़ा,जी लूँ जी भर हँसते मुस्कुराते