सितम की मत करो इंतहा कि बगावत ही हो मज़लूम को इतना सताना नहीं चाहिए तुम खुद अपनी नज़रों में इतना मत गिरो बेवजह सर झुकाना नहीं चाहिए थक जाए मनाते ना आये मुड़कर कोई इतना भी रूसाना किसी को नहीं चाहिए गर किसी के दिल में नहीं चाहत तेरे लिए तो कभी उसको मनाना नहीं चाहिए चुप रहनेवाले अक्सर होते हैं छुपे रुस्तम उनको नीचा दिखाना नहीं चाहिए बेज़ुबान है पशु पक्षी न कुछ कह पाएं कभी ज़ुल्म उनपे ढहाना नहीं चाहिए ठहरो तुम ,आसमान छूने की ज़िद्द रोको मुर्दों को सीढ़ी बनाना नहीं चाहिए -सीमा कौशिक 'मुक्त'
Nice one.
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thank you ! : )
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no need dear
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वाह बेहद खूबसूरत पोस्ट
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dhanyavaad anupama ! : )
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