जो बेरहमी से .............अपनेपन के धागे तोड़े कोई कैसे समझे............. उससे रखें या छोड़ें सबको छोड़ कर जाना ही है,सबकुछ इक दिन मुँह मोड़कर चलें........इससे पहले के वो मोड़े ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
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नारी
अनकहा अंतर्मन अनकही अंतर्व्यथा अनकहा कह दूँ क्या अव्यक्त भावना सोच से परे अव्यक्त नारी कुछ कही, कुछ अनकही नारी अव्यक्त भी ,अभिव्यक्त भी नारी के इंद्रधनुषी रंग देह से परे अव्यक्त सी नारी सम्पूर्ण अस्तित्व से परिचित होना चाहते हो कर हिम्मत कह दूँ क्या ? उसके सम्पूर्ण अस्तित्व से अपरिचित तुम नारी सम्पूर्ण अस्तित्व नारी अंतर्मन -दर्पण नारी अंतर्मन - एक आइना नारी के मन का हस्ताक्षर नारी अभिव्यक्ति नारी के मन का मोल ? नारी का अनमोल अंतर्मन नारी की चुप्पी में छुपा इंद्रधनुष मालूम नहीं नारी को कोई कैसे परिभाशित करे जितना लिखे वो कम लगे उसका क्या पता क्या हमें अप्रत्याशित लगे ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
बदलाव
मौसम बदले, वक़्त बदला, हम भी बदल गए ख्वाहिशें बदली, ख़्वाब ओ अंदाज़ बदल गए यूँ सभी कहते रहे.... ख़त्म ज़िन्दगी, ख़त्म हम ! पल-पल नयी ज़िन्दगी के...मायने बदल गए ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
sp 3
दिल हारे जान हारे, गए हार संसार हार-हार ही जीते हम, जीता अपना प्यार ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
sp 2
अब ऐसा भी नहीं इस जहाँ के नहीं हम तुम पर इस जहाँ के जैसे हरगिज़ नहीं हम तुम ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
आँसू
आँसू वो शब्द हैं जो लिखे जाने चाहिए पढ़े जाने चाहिए समझे जाने चाहिए माना आँसू पौंछना, इंसानियत है मगर कारण आँसुओं का मिटाया जाना चाहिए ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
चुनौती
भान नहीं नारी को अपने अधिकारो का, समझे ये पुरुष की बपौती है और पता होने पर उन्हें माँगना ,हासिल करना, बड़ी कड़ी चुनौती है ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
वक़्त की आँच
रुत बदलती रहीं उम्र ढलती रही दिल सिसकता रहा रूह तड़पती रही झूठ में, सॉंच में, वक़्त की आँच में मोम के बुत की तरह पिघलती रही ज़िन्दगी तू बता, क्या है मेरी खता क्यों इस तरह रंग तू बदलती रही खुशियों की आस में प्यार की प्यास में दर्द का क़तरा-क़तरा सटकती रही मौन के शोर में दर्द की हिलोर में ज़िन्दगी करवटें ही बदलती रही झूठ में, सॉंच में, वक़्त की आँच में मुक्ति की चाह में, 'मुक्त' बँधती रही ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
अवसान
माँ का दुनिया से जाना न इतना आसान रब को भी करनी पड़े मेहनत घमासान इतने जुड़े बच्चों से माँ के दिल के तार मोह-माया से विलग कैसे होय अवसान ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
फीस
बिस्तर पर पड़ी माँ अपने दर्द में कभी कभी इतना डूब जाती है कि उसे अपने बच्चों के प्रयास और परेशानियाँ दिखाई नहीं देते। वो दुर्भावना से ग्रस्त हो जाती है ,और बच्चे उसे इस स्थिति में से निकालने की कोशिश में परेशान ! ऐसा ही कुछ देखा तो लिखा-----(अपवाद हमेशा ही होते हैं ) है पीर सहन से परे उठती ह्रदय में टीस पाषाण ह्रदया मरणासन्न माँ, देती दुराशीष कैसे बाँटें दर्द को, बच्चे हुए बेचैन दुःख-अवसाद बच्चों को हुई ममत्व की फीस ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️