अनछुए

तेरे अनछुए अहसासों की रेशमी छुअन 
मेरे कंपकपाँते  लब, डबडबाते  नयन 
तेरे दिल की बात मेरे दिल तक पहुँची
बिनकहे हो रहा अहसासों का रमन   
दूर क्षितिज ! धरा-गगन मिल रहे हैं, मिलने दो 
फ़क़त अनुपम और अनूठा है ये मिलन 
       ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️ 

हुनर

चाह, सराह, प्यार भरी बातों से दिल में उतरने का हुनर रख    
अपने महबूब को सर-आँखों पे ,बिठाने का जज़्बा-ओ-हुनर रख 
आसमान-सा छा तू उसकी हस्ती पर, मिटा दे उसके सब गम 
अपने सनम को खूबसूरत ग़ज़ल-सा ,गुनगुनाने का हुनर रख 
               ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️ 

अनकहा

रिश्तों में न ज़रूरी है न अच्छा, सबकुछ कहना  
कुछ अनकहा हमारे बीच, अनकहा रहने दो 
कहके न खोना वो पल, जो हमने महसूस किये
उन पलों को दिल में सहेज, प्यार से रहने दो  
कुछ अनकहा हमारे बीच अनकहा रहने दो ।। 
 
मुद्दतों बाद हँसे हैं हम ,तो हँस भी लेने दो 
नज़र लगे न किसी की, यूँही हमें रहने दो 
इस दुनिया को सब कुछ क्यों बताएँ हम 
तुम छोड़ दो ज़िद्द दुनिया की अनकहा रहने दो 
कुछ अनकहा हमारे बीच अनकहा रहने दो ।। 

दुनिया जाने न जाने, रब तो सब जानता है 
रब के वास्ते हमें अब चुप ही रहने दो  
तेरे मन का दर्पण शक्ल मेरी पहचानता है 
इस दर्पण पे कभी धूल मत आने देना 
कुछ अनकहा हमारे बीच अनकहा रहने दो।। 
               ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️ 

नक्काशी

🌹🌹प्यार की बारीक सुई से उसने की पत्थर दिल पर नक्काशी 
दिल के तपते सेहरा में यूँ  नखलिस्तान की उम्मीद जगा दी  
लगता था जिसे नहीं पहुँचती आसमानों तक सदायें उसकी 
जाने कैसे उसने उसकी ख़्वाहिश में रब की मर्ज़ी मिला दी 🌹🌹
              ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️ 

चोरी का मज़ा

चोरी का अपना मज़ा है 
एक बच्चे ने समझाया 
जब वो माँ से छिपकर पार्क में खेलने आया 
माँ-बाप जिस बात के लिए मना  करते थे 
उसीको करने को सभी बच्चे मचलते थे 
हम सब जीवन की राहों में हर बार मचलते हैं 
कुछ  चोरी-चोरी करने की ज़िद्द पकड़ते है 
डॉक्टर ने मना किया कुछ खाने को या  
पापा ने मना किया पिक्चर जाने को 
या विवाहेतर सम्बन्ध बनाने को 
इज़ाज़त मिल जाए तो करने का मन नहीं रहता 
न मिले इज़ाज़त तो बंधन तोड़ने को आतुर मन रहता 
आखिर ऐसा क्यों है चोरी में मज़ा क्यों है
ये उत्तेजना क्यों है  
माँ-बाप हों या अपना कोई और
 वो सही ही समझाते हैं 
चोरी के दुष्परिणामों से वो ही बचाते हैं
लौट कर बुद्धू घर को आते हैं 
तन से चोरी ,धन की चोरी,पकड़ी अक्सर जाती है 
पर मन की चोरी बहुत हमें तड़पाती है 
माना मन की चोरी में आनंद है 
इस आनंद से उभरें तो ब्रह्मानंद है !

तपिश

उन नज़रों की तपिश से पिघले तो घबरा गए हम 
दिल धड़कने लगा जोरों से और आँखें हुई नम 
बेखबर थे अंदर की अनबुझी आग या प्यास से 
और क्या कहूँ ! इसके बाद हम भी तड़पे नहीं कम  
              ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️ 

आस

मना किया हमने कोई आस न हमसे लगाए
जाने क्यों बैठा रहा, राह में दीपक जलाए 
हमने करीब आने को किया था इंकार मगर   
आगया ख्वाबों में वो आस के दीये  सजाए  
        ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️ 

दर्द

दर्द इस कदर बढ़ रहा ज़िंदगानी में 
किरदार ही ख़त्म न हो इस कहानी में    
पस्त हों हौंसले चल पहले यूँ कर लें  
बसायें दर्द को खून की रवानी में 
       ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️ 

सज़ा

हम दर्द के साथ भी जी लेंगे 
हम ज़ख्म-ऐ-जिगर भी सी लेंगे 
कोई हमें सज़ा क्या देगा जब 
हम ज़हर भी ख़ुशी से पी लेंगे
       ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️