मेरा प्यार समंदर सा गहरा ठहरा क्यों
हरतरफ सागर पर दिल में सेहरा क्यों
क्या फर्क पड़ता है प्यार मिले ना मिले
मेरा प्यार इस कदर अंधा बहरा क्यों
मेरा प्यार समंदर सा गहरा ठहरा क्यों
बेरुखी बेपरवाही ही जिसका मंत्र रहा
मतलब परस्ती जिसका है धर्म रहा
अपने से ऊपर,किसी को ना रखा जिसने
उसकी मुस्कान बनाये रखने में वक़्त जाया क्यों
मेरा प्यार समंदर सा गहरा ठहरा क्यों
हम अपनी परेशानियों में इतना उलझें क्यों
हम अपनों की परेशानी का सबब बनें क्यों
मायूसियों को खुद तक ही रखना चाहिए हुज़ूर
बेशकीमती ख़ुशियों को दरबदर करें क्यों
मेरा प्यार समंदर सा गहरा ठहरा क्यों
खुद से इतनी शिकायत मुझे आजकल क्यों
खुद से ही इतनी फ़रियाद हर लम्हा क्यों
थक गयी हूँ आजकल खुद से मतलब रख के
मुझको मुझसे छीने किसीकी इतनी बिसात क्यों
मेरा प्यार समंदर सा गहरा ठहरा क्यों
कोई अपना रहे ना रहे अपना, तो क्या
टूट जाए तेरा कोई प्यारा सपना तो क्या
पत्थर के दिल पत्थर रहें,ना हों मोम कभी
इतने मर गए अहसास दिल के मगर क्यों
मेरा प्यार समंदर सा गहरा ठहरा क्यों
-सीमा कौशिक 'मुक्त'
Seema Kaushik is a poet based in Faridabad, India. She is an engineering graduate, who spent most of her life as a homemaker. After being forced to live according to society’s rules, she has finally discovered her voice in her 50s. Now, she writes to be free.
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