औरत

क्या औरत के बिन घर घर होता है 
जहाँ सिर्फ तन्हाइयों का डर होता है  
जहाँ होती है अपनेपन की कमी 
जहाँ दिन-रात बस बसर होता है 
क्या ----
जहाँ न सफाई न खाने की शुद्धता 
जहाँ तन मैला मन अशुद्ध रहता है 
जहाँ घर सांय-सांय,आपस में भाँय - भाँय 
दिल में दर्द का  डेरा रहता है 
क्या------
दुनिया को अकेले झेलना 
उसकी विकृत मानसिकता के साथ  
बेबसी और नशे का चंगुल 
जीवन में अदृश्य अँधेरा रहता है 
क्या --------
कोई प्यार से जब उस घर में जाए 
दिलको सन्नाटा महसूस होता है 
इक कमी का अहसास हरसूँ
खालीपन ठहाकों में होता है 
क्या --------
       ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️ 

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