ए ज़िन्दगी ! तेरे जाल में जो उलझा नहीं वो पार है प्यार है मुझे बहुत ...........पर उलझने से इंकार है तू मुस्काती ज़रूर है....... पर बुरी क्यों लगती है तू इसे ज़िंदादिली से नहीं जिया..तो ज़िन्दगी बेकार है ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
ए ज़िन्दगी ! तेरे जाल में जो उलझा नहीं वो पार है प्यार है मुझे बहुत ...........पर उलझने से इंकार है तू मुस्काती ज़रूर है....... पर बुरी क्यों लगती है तू इसे ज़िंदादिली से नहीं जिया..तो ज़िन्दगी बेकार है ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️