क्यों इतना दिल से हो याद करते, हवाएँ तेरा पैगाम लाएँ क्यों हमको इतना गहरे से तकते, बेसाख़्ता झुकी नज़रें जाएँ जब फ़क़त गैर सब की नज़र में, करीब कैसे आ पाए कोई मज़बूर इतना किया क्यों हमको, दिलसे दिलके बँध तार जाएँ ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
क्यों इतना दिल से हो याद करते, हवाएँ तेरा पैगाम लाएँ क्यों हमको इतना गहरे से तकते, बेसाख़्ता झुकी नज़रें जाएँ जब फ़क़त गैर सब की नज़र में, करीब कैसे आ पाए कोई मज़बूर इतना किया क्यों हमको, दिलसे दिलके बँध तार जाएँ ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️