इन्द्रियों को रोककर मन को परमात्मा में स्थिर कर उस स्थिर मन से प्राण को मस्तक में स्थापित कर परमात्मयोगधारणा में जो मनुष्य"ॐ" काउच्चारण करता हुआ शरीर त्यागता है ,वही परमपद को पाता है
इन्द्रियों को रोककर मन को परमात्मा में स्थिर कर उस स्थिर मन से प्राण को मस्तक में स्थापित कर परमात्मयोगधारणा में जो मनुष्य"ॐ" काउच्चारण करता हुआ शरीर त्यागता है ,वही परमपद को पाता है