पिता का बिछोह

पिता अस्वस्थ और वृद्ध हों 
एक दिन जाना ही होगा 
हम सभी जानते हैं मगर           
ये विरह कैसे सहेंगे
नहीं जानते हम मगर
जाना पिता का जैसे 
सर से साया हटना 
घने वृक्ष की छाँव का  
दुनिया के मेले में अचानक   
हाथ छूटा खोया सा बच्चा  
दुःख अवसाद असुरक्षा 
भी घेरती कभी कभी 
पिता जो कभी कड़क 
कभी मृदुल अहसास से 
हमेशा पाया नारियल सा 
अंदर से कोमल भाव के 
पिता की आँखों से ही 
डरते थे यदि होते गलत 
हर समस्या का हल थे जो 
उनकी सीख बनेंगी अब हर हल  
पिता की भावनाएँ सदा 
रहती हैं अव्यक्त पर 
पिता की परवाह अक्सर 
प्यार और डाँट में आती स्पष्ट  
पिता माँ बच्चों के लिए 
हमेशा एक सुरक्षा कवच 
पिता का हाथ सर पे रहा  
तो हर श्रम सार्थक हुआ   
आपका प्रतिरूप जिसने हमें 
जग में पाल-पोस बड़ा किया
हे परमपिता,हमारे पिता को 
निज चरणों में तू स्थान दे 
हम सभी उनकी आत्मा को 
पूर्ण मान और सम्मान दें ।

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